सीएम धामी की पसंद के बिना मंत्री तो दूर दर्जा प्राप्त मंत्री बनना भी होगा मुश्किल

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देहरादून राज्य में बीते एक माह में राज्य सरकार के मुखिया के सामने आपदा में राज्य की जनता को निजात दिलाने से लेकर नई योजनाओं को परवान चढाने की चुनौती है। वहीं कुछ राजनैतिक व गैर राजनीतिक लोग किसी भी तरह राज्य में कथित राजनीतिक आपदा आने का दावा कर रहे है। दिल्ली में बडे नेताओं की हो रही मुलाकातों को इस कथित राजनैतिक आपदा की शुरुआत से जोडकर पेश किया जा रहा है। ज्बकि हकीकत बिल्कुल अलग और जुदा है सूत्रो ने जो बताया है वो तो और भी चौंकाने वाला  है। राज्य में बेहद जल्द कैबिनेट विस्तार से लेकर दायित्व वितरण होने जा रहे है। इन दोनो ही कामो में सीएम धामी की मंजूरी के बिना कुछ नही होने वाला है। जानकार तो ये भी बताते है कि बार बार वेवजह दिल्ली जा रहे नेताओं को दिल्ली से अकारण घूमने् फिरने की बजाए राज्य में केंद्र राज्य की योजनाओं पर तेजी से काम करने की सलाह भी दी गई है। पुराने ताकतवर विधायक ये समझ भी चुके है यही वजह की एकाएक उनकी इंट्री तेजी से सीएम धामी के दरबार में होने लगी है और अपने क्षेत्र की मांगों के साथ साथ अपनेे शिकवे शिकायत मिटाने का भी उन्हे मौका मिल रहा है। सौम्य सरल सीएम पुष्कर सिंह धामी हलांकि इन सभी विषयों से उपर उठकर काम में जुटे है।

उत्तराखंड राज्य का ये दुर्भाग्य है कि यहाँ समय समय पर नेता ही राजनैतिक अस्थिरता पैदा करते रहे है और जब नाकाम रहे तो माहौल कुछ इस प्रकार से बनाने में जुट जाते है की सरकार का कामकाज प्रभावित होने लगे।  भाजपा के मंत्रियों, विधायकों की दिल्ली दौड़ से राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है ये बताने का फार्मूला फेल हो गया है।

सीएम पुष्कर सिंह धामी और गढवाल सांसद व भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया चीफ अनिल बलूनी की लंबी मुलाकात ने और भी कईयों के अरमानों पर पानी फेर दिया है। करीब तीन घंटे की इस मुलाकात में कई अहम विषय चर्चा में आए है सूत्र बताते है कि राज्य में प्रस्तावित कैबिनेट में फेरबदल कुछ मंत्रियों की छुट्टी भी हो सकती है जिनके कामकाज से सीएम संतुष्ट नही है इतना ही नही दिल्ली से उन्हे फुल फ्री हैंड और उनकी रायशुमारी या यूं कहें उनकी मंजूरी के बिना किसी भी नेता का कैबिनेट पंहुचना लगभग असंभव है। उत्तराखंड की सियासत में 24 साल से हर मुख्यमंत्री को अस्थिरता की अफवाहों से जूझना पड़ा है। नित्यानंद स्वामी से शुरू हुआ ये दौर हमेशा हर दौर में रहा। राज्य में अस्थिरता की हवा फैलने की सियासी शुरुआत में 24 साल से हर मुख्यमंत्री को अस्थिरता की अफवाहों से जूझना पड़ा है। नित्यानंद स्वामी से शुरू हुआ ये दौर हमेशा हर दौर में रहा। सोशल।मीडिया में भी इस प्रकार से माहौल पेश किया जा रहा है ताकि जनता में नाराजगी व्याप्त हो लेकिन ये मंसूबा फिलहाल सफल नही होता दिख रहा है। जानकारों की माने तो हालिाय दिनो में दिल्ली दौड लगाने वाले राज्य के कई नेता मंत्री असल में अपनी कुर्सी बचाने के लिये दौड़ लगाकर लौटे है। नेताओं को भी दिल्ली से संकेत मिल चुका है कि सीएम धामी से मंजूरी के बिना उनके मंत्रालय की कोई गारंटी नही है।   

धामी सरकार में कैबिनेट रैंक के चार मंत्रियों के खाली पदों को भरने की तैयारी है। चार नए मंत्री बनाए जाने के साथ ही कुछ पुराने मंत्रियों को हटाने अथवा बेहद कमजोर विभाग दिये जा सकते है। यही मंत्री सबसे अधिक उठापठक और मशक्कत में जुटे है ज्बकि इनके क्षेत्र कई परेशानियों से दो चार हो रहे है। यात्रा काल हो या आपदा अकेले सीएम धामी ही मोर्चे पर है ज्बकि मंत्री अपने नफा नुकसान का आंकलन करने में ही व्यस्त है।

नेताओं को साफ पता चल चुका है और तश्ववीरें गवाह है कि पिछले सवा दो साल से पूरी दूरी बनाय रखने वाले भाजपा के अति वरिष्ठ नेता पूर्व कैबिनेट मंत्री नेता मदन कौशिक, बिशन सिंह चुफाल ने भी सीएम से मुलाकात में बिल्कुल भी समय नहीं गंवाया। कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत ने भी न सिर्फ सीएम से मुलाकात की, बल्कि एक साथ भोजन कर सीएम की गुडबुक में होने का संदेश दिया। भाजपा केंद्रीय आलाकमान उत्तराखंड को लेकर इस बार बिल्कुल पूरी तरह स्पष्ट मूड में है।केंद्रीय अलाकामान के सामने बडा संदेश सीएम धामी के नेतृत्व से साफ गया है कि सत्ता में वापसी के साथ ही चार चुनाव पार्टी ने जीते है ज्बकि नकल माफिया से लेकर रजिस्ट्री घोटालेबाजों से लेकर भ्रष्टाचार में आईएएस आईएफएस राज्य गठन के बाद पहली बार रडार पर आये है।सीएम धामी सब कुछ जानते और समझते हुये भी सिर्फ पार्टी लाइन पर विकास रोजगार नवाचार के एजेंडें पर आगे बढ रहे है। लोकसभा चुनाव में पहली बार उत्तराखंड राज्य के किसी नेता को पार्टी ने देशभर में दो सौ से अधिक रोडशो सभा की जिम्मेदारी देकर एक साफ संदेश दे दिया है। सीएम धामी का यूसीसी और नकल विरोधी कानून पूरे देश में सुर्खियाँ बटोरने के साथ साथ लोगो की पहली पसंद भी है।