हरिद्वार, खनन का चस्का ही ऐसा है, एक बार जुबां को लग जाए फिर छूट नहीं सकता। जी हां, खनन की मलाई का स्वाद रख चुके एक सीओ साहब के जेहन में चौबीस घंटे सिर्फ खनन की खन खन ही धुमड़ती रहती है। जब मुखबिर साहब बहादुर को आवाज देता है, तब साहब बहादुर चेन सुकून से लेकर पुलिसिंग को ताक पर रखकर बस बरसाती नदी में छलांग लगा देते है। गौर करने वाली बात ही है, साहब को ट्रैक्टर ट्राली या डंपर की धरपकड़ में बिलकुल दिलचस्पी नहीं है, उन्हें सिर्फ अपने रजिस्टर की एंट्री की संख्या में इजाफा करना है।
पुलिस महकमे का हिस्सा बने साहब बहादुर की करतूत की वजह से एक दफा पहले भी पुलिस महकमे की किरकिरी हो चुकी है। जब सीओ साहब की पिटाई होते होते बची थी। एक सटोरिये की धरपकड़ के बाद मचे राजनैतिक तूफान में सीओ साहब उड़ते उड़ते बच गए थे, पर उन्होंने उससे सबक नहीं लिया।
आखिर उन्हें मलाई ही चाटनी है। अब भला कोई पूछे कि एक सटोरिये को पकड़ने के लिए साहब बहादुर पुलिस में भर्ती हुए है। एसओ है, कांस्टेबल है, चेतक सवार पुलिसकर्मी है।
फिर भी साहब आस्तीनें चढ़ाकर कूद पड़े थे। अब साहब ने बरसाती नदी का अपना नया टॉरगेट बनाया है। एक बार तो हद ही हो गई। मुखबिर ने जैसे ही ट्रैक्टर ट्रालियों की मौजूदगी नदी में होने की जानकारी दी, तुरंत ही वहां से गुजर रहे साहब अपने परिवार के साथ ही नदी में कूद पड़े। ट्रैक्टर भी हत्थे चढ़े। आदमी भी पकड़ में आएं। पर साहब ने खनन करने पर एतराज नहीं जताया बल्कि उनका पारा इस बात पर चढ़ा कि एंट्री क्यों नहीं कराई।
पुलिस महकमे से लेकर खनन के धंधेबाजों में एंट्री शब्द की बड़ी अहमियत है। हैरानी की बात यह है कि सीओ साहब की दिलचस्पी पुलिसिंग का कहकरा सीखने की बजाय केवल माया में कई गुना अधिक है। बताते है कि एंट्री की संख्या चार से लेकर पांच है। एंट्री की तारीख का एक दिन गुजरने पर ही साहब बैचेन हो जाते है, फिर उनके ड्राइवर गनर तुरंत एंट्री की रस्म पूरी करवाने में जुट जाते है। जब एंट्री आते है, फिर साहब चुनमुन की तरह खुश हो जाते है।