स्वार्थियों ने छेड़ी पहाड़ बनाम मैदान’ की बहस, नौकरशाही को लिया जा रहा निशाने पर

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पहाड़ बनाम मैदान’ की बहस, नौकरशाही पर सोशल मीडिया में बेवजह लगा रहे आग


देहरादून, उत्तराखंड – एक बार फिर से उत्तराखंड में ‘पहाड़ बनाम मैदान’ की बहस सोशल मीडिया के ज़रिए गरमा गई है। सोशल मीडिया पर कुछ नेताओं, कथित समाजसेवियों और राजनीति में अपनी ज़मीन खो चुके लोगों द्वारा नौकरशाही में क्षेत्रीय भेदभाव का मुद्दा उछाला जा रहा है। इससे राज्य में सामाजिक सौहार्द्र को नुकसान पहुंचने की आशंका गहराने लगी है।

पूर्व मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल से जुड़े एक पुराने विवाद के बाद कुछ वर्ग विशेष ने उस प्रकरण को जाति और क्षेत्रवाद से जोड़ने की कोशिश की थी। अब वही रवैया राज्य की नौकरशाही के खिलाफ अपनाया जा रहा है, जिसमें ‘पहाड़ बनाम मैदान’ की सोच को फिर से ज़िंदा किया जा रहा है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह मानसिकता राज्य के विकास के लिए बेहद घातक साबित हो सकती है। नौकरशाहों की नियुक्ति अखिल भारतीय सेवाओं (All India Services) के अंतर्गत होती है और वे देश के किसी भी हिस्से में सेवा देने के लिए बाध्य होते हैं। ऐसे में उन्हें क्षेत्र विशेष से जोड़ना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह प्रशासनिक व्यवस्था पर भी सीधा हमला है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कुछ अवसरवादी नेता और सामाजिक सौहार्द्र को बिगाड़ने वाले तत्व इन मुद्दों को हवा देकर लोगों के बीच नफरत पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। यह स्थिति राज्य की एकता को नुकसान पहुंचा सकती है और उत्तराखंड की राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी विपरीत प्रभाव डाल सकती है।

प्रदेश के जागरूक नागरिकों और सामाजिक संगठनों ने ऐसे प्रयासों की निंदा करते हुए कहा कि उत्तराखंड की पहचान उसकी एकता, सांस्कृतिक विरासत और शांतिपूर्ण वातावरण से है। इस तरह की क्षेत्रीय सोच से केवल राज्य का ही नहीं, बल्कि उसके भविष्य का भी नुकसान हो सकता है।
राज्य में विकास और सामाजिक समरसता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि राजनीतिक लाभ के लिए समाज में ज़हर घोलने की कोशिश करने वालों को करारा जवाब दिया जाए। पहाड़ और मैदान उत्तराखंड के अभिन्न अंग हैं और एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। ऐसे में किसी भी प्रकार का भेदभाव राज्य की जड़ों को कमजोर कर सकता है।