देहरादून में ज़मीन विवाद का वीडियो वायरल, दरोगा पर कार्रवाई से उठे कई सवाल
देहरादून। राजधानी देहरादून में ज़मीन विवाद से जुड़ा एक वीडियो पिछले 24 घंटों में सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो में चौकी इंचार्ज सब इंस्पेक्टर हर्ष अरोड़ा और उत्तराखंड शासन के अपर सचिव अरुणेंद्र सिंह चौहान के बीच बहस और तनातनी देखी जा सकती है। वीडियो को इस तरह से प्रचारित किया जा रहा है जैसे दरोगा एक पक्ष विशेष के दबाव में आकर बड़े अधिकारी से अभद्रता कर रहे हों।कुछ को चिंता ये भी है कि दरोगा ने ray ban का चश्मा कैसे पहन लिया।
हालांकि, उसी वीडियो के एक हिस्से में यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि खुद अपर सचिव अरुणेंद्र सिंह चौहान भी आक्रामक रवैया अपनाते हुए मारपीट पर उतारू नजर आ रहे हैं। ज़मीन संबंधी विवाद का असली सच तो अब राजस्व विभाग की रिपोर्ट के बाद ही सामने आ सकेगा, लेकिन इस घटना ने कई गंभीर सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं।
सबसे अहम सवाल यह है कि क्या अब कोई भी वरिष्ठ अधिकारी स्वयं मौके पर पहुंच कर न्याय करने लगेगा? अगर ऐसा होता है तो पूरे प्रदेश की विवादित ज़मीनें खुद-ब-खुद कब्जा मुक्त हो जाएंगी और यह शासन-प्रशासन के लिए ‘इमेज बिल्डिंग’ का जरिया बन जाएगा।
सवाल यह भी है कि एक बड़े अधिकारी के पास इतने सारे वैधानिक और प्रशासनिक विकल्प होते हैं, फिर भी उन्होंने सरकारी गाड़ी से मौके पर जाकर व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप करना क्यों ज़रूरी समझा? क्या यह सरकारी शक्ति का दुरुपयोग नहीं है? वीडियो में मारपीट जैसा जो दृश्य सामने आया है, वह भी चिंता का विषय है—क्या उन्हें किसी के साथ हाथापाई करने का अधिकार प्राप्त है?
उधर, चौकी इंचार्ज हर्ष अरोड़ा को तत्काल प्रभाव से हटा दिया गया है, जिससे एक बार फिर यह धारणा बन रही है कि सिस्टम में पुलिस सबसे कमजोर कड़ी बनकर रह गई है। दरोगा की वर्दी, सम्मान और वेतन—इन सबसे परे, यदि उन्होंने एक अच्छा चश्मा पहन लिया तो क्या उसे मुद्दा बनाना सही है?
अंत में सवाल यह भी उठता है कि यदि पुलिस हर मौके पर कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पहुंचती है, तो उसे बिना सुने ही सजा देना कहां तक उचित है? अरुणेंद्र सिंह चौहान मौके से तुरंत रवाना हो गए, कुछ देर ठहरते तो शायद स्थिति स्पष्ट होती।
अब सबकी निगाहें राजस्व विभाग की रिपोर्ट पर टिकी हैं, जो तय करेगी कि इस विवाद में सही कौन था और ग़लत कौन। लेकिन तब तक, यह मामला अधिकारियों की भूमिका और पुलिस की स्थिति पर गंभीर बहस छेड़ चुका है।