वैदिक मंत्रोच्चार और श्री बद्री विशाल लाल की जय के नारों के साथ बद्रीनाथ धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले गए। इससे पहले ब्रह्ममुहूर्त में मंदिर के बाहर गणेश पूजन हुआ। इसके बाद पुजारियों ने द्वार पूजा की। मंदिर का कपाट तीन चाबियों से खोला गया।
कपाट खुलते ही पहले दर्शन अखंड ज्योति के होंगे। यह 6 महीने से जल रही है। इसके बाद बद्रीनाथ पर चढ़ा हुआ घी से बना कंबल हटाया जाएगा। जो 6 महीने पहले कपाट बंद होने के समय भगवान को ओढ़ाया जाता है। इस कंबल को प्रसाद रूप में बांटा जाता है। मंदिर के कपाट पिछले साल 14 नवंबर को बंद हुए थे।
6 से 8 बजे तक बिना श्रंगार वाले दर्शन
चारधाम तीर्थ पुरोहित पंचायत के महासचिव डॉ. ब्रजेश सती ने बताया कि सुबह 6 से 8 बजे तक भगवान के बिना श्रंगार के दर्शन होंगे। जिसे निर्वाण दर्शन कहते हैं। इसके बाद तकरीबन 8 बजे पहला जलाभिषेक होगा और पहली पूजा प्रधानमंत्री के नाम से होगी।
इसके बाद 9 बजे बालभोग लगेगा। दोपहर 12 बजे पूर्ण भोजन का भोग लगेगा। ये ही भोग ब्रह्मकपाल भेजा जाएगा। भोग पहुंचने के बाद ही वहां पहला पिंडदान होगा।
पहले दिन 20 हजार श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना, 7 लाख लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया
- मंदिर को करीब 15 क्विंटल फूलों से सजाया गया है। पहले दिन दर्शन के लिए लगभग 20 हजार लोगों के पहुंचने की संभावना है।
- 11 से 13 मई तक बारिश और बर्फबारी की आशंका होने पर मौसम विभाग ने अलर्ट जारी किया है। बद्रीनाथ धाम दर्शन के लिए 9 मई की शाम तक कुल 6 लाख 83 हजार लोगों के रजिस्ट्रेशन करवा लिया है।
तीन चाबियों से खुला कपाट का ताला
मंदिर कपाट का ताला तीन चाबियों से खुला। इनमें एक टिहरी राजदरबार, दूसरी चाबी बद्री-केदार मंदिर समिति के पास और तीसरी चाबी बद्रीनाथ धाम के रावल और पुजारियों के पास होती है, जिन्हें हक-हकूकधारी कहा जाता है।
इससे पहले 11 मई को सुबह भगवान बद्रीनाथ की डोली पांडुकेश्वर मंदिर से रवाना हुई। पालकी में गरुड़ जी और शंकराचार्य की गद्दी थी। पांडुकेश्वर मंदिर से डोली में कुबेर और उद्धव जी की चलित प्रतिमा भी शामिल हुई। डोली के साथ मंदिर के रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी और शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती थे। डोली 11 की शाम को मंदिर पहुंची।
बद्रीनाथ मंदिर का धर्मिक महत्व और इतिहास
1. उत्तराखंड के चमोली जिले में ये मंदिर समुद्र स्तर से 3,133 मीटर की ऊंचाई पर बना है। हर साल करीब 10 लाख श्रद्धालु बद्रीनाथ धाम पहुंचते हैं।
2. मंदिर में भगवान विष्णु की बद्रीनारायण स्वरूप की 1 मीटर की मूर्ति स्थापित है। इसे श्री हरि की स्वंय प्रकट हुई 8 प्रतिमाओं में से एक माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु ध्यान करने के लिए एक शांत और प्रदूषण मुक्त जगह की तलाश में यहां पहुंचे थे।
3. इतिहास के मुताबिक बद्रीनाथ धाम को आदि शंकराचार्य ने 9वीं शताब्दी में स्थापित किया था। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने ही अलकनंदा नदी से बद्रीनाथ की मूर्ति निकाली थी।
4. इस मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में भी मिलता है। मंदिर के वैदिक काल (1750-500 ईसा पूर्व) में भी मौजूद होने के बारे में पुराणों में बताया गया है।
5. भगवान बद्रीनाथ का तिल के तेल से अभिषेक होता है। इसके लिए तेल टिहरी राज परिवार से आता है। बद्रीनाथ टिहरी राज परिवार के आराध्य देव हैं। मंदिर की एक चाबी राज परिवार के पास भी होती है।
6. बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं, वे रावल कहलाते हैं। केरल स्थित राघवपुरम गांव में नंबूदरी संप्रदाय के लोग रहते हैं। इसी गांव से रावल नियुक्त किए जाते हैं। इसके लिए इंटरव्यू होता है यानी शास्त्रार्थ किया जाता है। रावल आजीवन ब्रह्मचारी रहते हैं।