नोट यह आलेख एक वरिष्ठ राजनीतिक एनालिस्ट द्वारा प्राप्त है।
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ऐसे समय में, जब पूरे देश में लोकसभा चुनाव की सरगर्मी चरम पर है। आरोपों और प्रत्यारोपों की होड़ निरंतर जारी है। वैचारिक स्तर पर होने वाला विरोध व्यक्तिगत हो चला है, और जब दूसरे पक्ष को हिकारत और दुश्मन की तरह देखा जा रहा हो।
ऐसे समय में यदि कोई दूसरे को सम्मान दे रहा हो, आदर कर रहा हो और आगे बढ़कर गले लगाने को आतुर हो। तो यह बात इस सरगर्मी में ठंडी हवा के झोंके के समान है।
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बात हो रही है उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की। होली की पूर्वसंध्या पर धामी ने अपने आवास पर होली का कार्यक्रम आयोजित किया। इस कार्यक्रम में पार्टी के तमाम नेताओं को निमंत्रित कर उनके साथ होली खेली। धामी सिर्फ इतना करके होली को रस्मी तौर पर निपटा सकते थे। लेकिन उनका मन और उनके संस्कार इतने भर से कहां मानने वाले थे।
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मुख्यमंत्री होली के दिन सबसे पहले राजभवन गए। राज्यपाल को होली की शुभकामनाएं दीं और उसके बाद उन्होंने राज्य में मौजूद प्रत्येक पूर्व मुख्यमंत्री के घर जाकर होली खेलने का निर्णय लिया।
धामी उत्तराखंड के सबसे कम आयु में बनने वाले मुख्यमंत्री हैं, और सभी पूर्व मुख्यमंत्री आयु में उनसे बड़े हैं। उन्होंने भगत सिंह कोश्यारी, भुवन चंद्र खंडूरी, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत जैसे भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्रियों के घर जाकर होली तो खेली ही, इसके बाद वह कांग्रेस की सरकार में मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत के घर भी पहुंच गए और उनके साथ होली खेलकर शुभकामनाएं दी।
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अपने से बड़ों को सम्मान देना, उनका आदर करना और समय-समय पर उनका मार्गदर्शन लेते रहना, पुष्कर धामी का यही अंदाज वर्तमान राजनीति में उन्हें औरों के मुकाबले अलग खड़ा करता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबका साथ और सबका प्रयास के मंत्र को धामी ने अपनी कार्यशैली में पूरी तरह से समाहित कर रखा है।
2022 के विधानसभा चुनाव से पूर्व पुष्कर धामी पर दाँव खेलकर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने लोगों की नज़र में एक बड़ा जुआ खेला था, लेकिन शायद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने बहुत ही नापतोल कर निर्णय लिया था। बच्चे, बूढ़े, महिलाओं और बुजुर्गों का सम्मान तथा उन सबके साथ संवाद करके धामी ने अपने पहले कार्यकाल के छह महीनों में ही भाजपा के पक्ष में माहौल बना दिया और उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार कोई भी पार्टी पुनः सत्ता में वापस लौटी।
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बात चाहे बीजेपी के मूल एजेंडे को लागू करने की हो, डबल इंजन का भरपूर उपयोग करने की हो, या फिर सबको साथ लेकर चलने की हो, धामी सभी मोर्चों पर लगातार खरे उतरते दिखाई दे रहे हैं। अपनी पार्टी के नेताओं के साथ-साथ धामी विपक्ष के नेताओं को भी भरपूर समय देते हैं, और उनकी बात बड़े ध्यान से सुनते हैं। शायद यही कारण है उत्तराखंड में विपक्ष के नेता भी व्यक्तिगत स्तर पर धामी की तारीफ करते पाए जाते हैं, और उन पर निजी हमले करने से बचते हैं।
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पुष्कर धामी का यही स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स उन्हें भीड़ से अलग खड़ा करता है, और एक सुखद अहसास भी कराता है कि उत्तराखंड के पहाड़ों से आने वाली समावेशी राजनीति की ठंडी हवाएं सबको शीतलता प्रदान करती रहेंगी।