देहरादून राजधानी दून की जिलाधिकारी ने राजस्व रिकार्ड के रूप में दूनवासियों को नववर्ष की एक बड़ी सौगात दी है। अब जमीनों के फर्जीवाड़े में रिकॉर्ड की कमी होने का रोना खत्म होने जा रहा है
करीब 150 साल बाद सहारनपुर से देहरादून राजस्व रिकार्ड में जमीनों की रजिस्ट्री और पावर ऑफ अटानी जैसे अहम दस्तावेज लेकर जिला प्रशासन की टीम लौट आई हैं। शनिवार को दोपहर बाद रिकार्ड वाहनों में लादे गए और देर रात तक इन्हें सुरक्षित दून ले आया गया है। रिकार्ड में करीब 1600 जिल्द हैं
दरअसल शुरुआती रिकार्ड उपलब्ध न होने की दशा में जमीनों की कुंडली ढंग से खंगालना मुश्किल हो जाता है। हालांकि, अब वर्ष 1868 से 1958 तक के रिकार्ड दून में उपलब्ध हो जाने की दशा में जमीनों के घपलों पर अंकुश लग पाएगा।
1868 के रिकार्ड उपलब्ध होने से मिलेगा लाभ
दून में जमीनी के घपले निरंतर बढ़ रहे हैं। प्रापटी डीलर और बिल्डर जिन जमीनों को अपनी बताकर बेचते हैं, वह कई दफा पुराने रिकार्ड में किसी और के ही नाम पर दर्ज पाई जाती है। जमीनों के हस्तांतरण की कई कड़ी जोड़ने पर भी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाती है 1958 के बीच के देहरादून के जो राजस्व रिकार्ड सहारनपुर में थे, उन्हें लाने को लेकर अधिकारियों ने ठोस इच्छाशक्ति दिखाई दिखाई लेकिन इसे पूर्ण डीएम सोनिका ही करा सकी
वर्ष 1871 में देहरादून भले ही प्रशासनिक रूप से सहारनपुर से अलग होकर पृथक जिला बन गया था, लेकिन राजस्व रिकार्ड दून नहीं पहुंच पाए। इस दरम्यान उत्तर प्रदेश से अलग होकर वर्ष 2000 में उत्तराखंड अलग राज्य बना। देहरादून जिले को प्रदेश की राजधानी होने का गौरव भी मिला, लेकिन प्रशासनिक ढर्रा अपनी रफ्तार से चलता आ रहा था।