सीएम धामी के धान रोपाई पर कांग्रेस के सवाल लेकिन कांग्रेस को ही देना होगा जवाब

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मुख्यमंत्री धामी ने खटीमा में की धान की रोपाई, कांग्रेस के आरोपों पर जवाब में उठे ‘संस्कृति बनाम नौटंकी’ के सवाल

देहरादून/खटीमा — उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपने खटीमा स्थित पैतृक खेत में पहुंचकर धान की रोपाई करते नजर आए। उनके खेत जोतने और परंपरागत ‘हड़का’ की थाप पर लोक संस्कृति के साथ धान रोपते हुए वीडियो जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुए, कांग्रेस ने इस पर तंज कसते हुए इसे राहुल गांधी की नकल करार दिया।

लेकिन इस आरोप का जवाब खुद मुख्यमंत्री की शैली और धरातल से मिलता है। जहां राहुल गांधी हाल ही में किसी अन्य खेत में मीडिया की मौजूदगी में धान की रोपाई करते दिखे, वहीं मुख्यमंत्री धामी अपने पैतृक खेत में वर्षों से ये परंपरा निभाते आए हैं।

मुख्यमंत्री धामी की धान रोपाई के दौरान लोक संस्कृति की झलक भी देखने को मिली। पारंपरिक वाद्य ‘हड़का’ की थाप पर महिलाएं लोकगीत गाते हुए खेतों में उतरती दिखीं। यह कुमाऊँ अंचल की एक जीवंत परंपरा है, जिसे सीएम ने ना सिर्फ निभाया बल्कि संरक्षण का भी संदेश दिया।

मुख्य अंतर जो साफ दिखते हैं:

  1. स्थान का अंतर: मुख्यमंत्री धामी अपने पैतृक खेत में पहुंचे, जबकि राहुल गांधी किसी और के खेत में।
  2. अनुभव की झलक: धामी बचपन से खेती से जुड़े रहे हैं, राहुल गांधी को देखकर ऐसा नहीं लगा।
  3. धरातल का फर्क: मुख्यमंत्री धामी के कपड़े कीचड़ से सने थे, जो खेत में वास्तविक मेहनत को दर्शाता है, जबकि राहुल गांधी साफ कपड़ों में ही लौट आए।
  4. संस्कृति से जुड़ाव: मुख्यमंत्री ने परंपरागत लोकगीतों, वाद्यों और ग्रामीण महिलाओं की सहभागिता के साथ रोपाई की – ये सिर्फ खेती नहीं, संस्कृति का सम्मान था।

राजनीतिक बयानबाज़ी के बीच यह तस्वीर यह स्पष्ट करती है कि एक ओर है राजनीति में परंपरा का समावेश, और दूसरी ओर परंपरा में राजनीति की भूमिका तलाशने की कोशिश।

इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर यह बहस छेड़ दी है कि क्या हर जनसंवाद या परंपरा से जुड़ाव भी राजनीति की नजरों से तौला जाएगा? या फिर जनप्रतिनिधियों को अपनी संस्कृति से जुड़ने का अधिकार है?

जब धामी खेतों में उतरे, तो कुछ नेताओं को क्यों हुई आपत्ति?

देहरादून/खटीमा।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी शनिवार को अपने पैतृक गांव नगला तराई पहुंचे, जहां उन्होंने परंपरागत तरीके से बैलों के साथ खेत जोता और घुटनों तक पानी में खड़े होकर धान की रोपाई की। जैसे ही तस्वीरें और वीडियो सामने आए, सोशल मीडिया पर लोग इसे “धरती पुत्र का धरती से रिश्ता” बताते हुए सराहने लगे।

लेकिन मुख्यमंत्री की ये सादगी और मिट्टी से जुड़ाव कुछ नेताओं को रास नहीं आई। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसे राहुल गांधी की नकल बताया और सोशल मीडिया पर तंज कस दिया।

अब सवाल ये है – क्या धान की रोपाई करना भी किसी पार्टी का पेटेंट हो गया है? क्या नेता अगर खेत में जाए तो पहले विपक्ष से इजाज़त लेनी पड़ेगी?

हरीश रावत का यह बयान तब आया है, जब हाल ही में राहुल गांधी भी धान की बुवाई करते नजर आए थे। लेकिन फर्क साफ है:

धामी अपने पुश्तैनी खेत में गए, जबकि राहुल गांधी किसी और के खेत में कैमरों के बीच पहुंचे।

धामी के कपड़े कीचड़ से सने थे, उनके साथ कोई प्रचार टीम या नेताओं की भीड़ नहीं थी।

उन्होंने बैलों से पाटा खिंचवाया, खेत समतल किया और खुद धान की रोपाई की, जो उनके बचपन का हिस्सा रहा है।

खेत में ‘हड़का’ की थाप पर महिलाओं द्वारा गाए जा रहे पारंपरिक लोकगीतों के साथ उन्होंने न सिर्फ खेती की, बल्कि उत्तराखंडी संस्कृति का जीवंत उदाहरण पेश किया।

यह नकल नहीं, जड़ों से जुड़ाव है।

पूर्व सीएम हरीश रावत की चिंता शायद इसलिए बढ़ गई क्योंकि धामी का ये सहज रूप उनकी “फेसबुक फसल नीति” से मेल नहीं खाता। रावत जी अक्सर पहाड़ी उत्पादों के साथ तस्वीरें पोस्ट करते हैं, लेकिन खुद खेतों में पसीना बहाते नहीं दिखते।

राहुल गांधी का इतिहास भी यही कहता है – चाहे तमिलनाडु की बुवाई हो या कर्नाटक का हल चलाना, हर बार इवेंट मैनेजमेंट और मीडिया कवरेज पहले से तय होती है। कैमरे, पोज़ और टीम… लेकिन असल मिट्टी से रिश्ता कहीं गायब होता है।

इसके उलट, मुख्यमंत्री धामी ना तो किसी कैमरा टीम को लेकर पहुंचे, ना ही कोई राजनीतिक भाषण दिया। उनका ये काम प्रचार नहीं, परंपरा और जीवन का हिस्सा है।

धामी का जीवन संघर्षों से निकला है। एक सैनिक के बेटे, जिनके दादा और नाना किसान रहे। उन्होंने खुद खेतों में काम किया, धूल फांकी, मेहनत की और आज भी जब मौका मिले तो उसी मिट्टी में लौटते हैं – बिना किसी तमाशे के।

इस पूरे विवाद ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है –
क्या अब नेता का खेतों में जाना भी ‘राजनीतिक चोरी’ बन गया है? या फिर राजनीति में असली धरतीपुत्रों को डराने की कोशिश हो रही है?

राजनीति में चेहरे बहुत हैं, लेकिन जड़ों से जुड़ा जननायक विरला ही होता है – और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी निश्चित रूप से उनमें से एक हैं।