पुष्कर धामी के रूप में उत्तराखंड को मिले परफेक्ट सीएम, अभी तक के सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेहतर गुणों का पुष्कर में है समावेश, एनडी तिवारी जैसी विनम्रता, खंडूडी, त्रिवेंद्र जैसी सख्ती, हरीश जैसा मूवमेंट, सब कुछ है पुष्कर में
देहरादून। उत्तराखंड में किसी भी नए मुख्यमंत्री के कुर्सी संभालते ही उनकी तुलना पुराने सीएम और दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों से होना शुरू हो जाती है। पुराने सीएम के गुणों को याद करते हुए नए सीएम को कोसने का सिलसिला शुरू हो जाता है। ये पहला मौका है, जब न आम जन, मीडिया और न ही नौकरशाही को किसी पूर्व सीएम की याद आ रही है। किसी प्रकार की कोई तुलना नहीं हो रही है। बल्कि सीएम के रूप में पुष्कर सिंह धामी खुद ही एक लंबी लकीर खींच रहे हैं। उनके रूप में इस बार उत्तराखंड को परफेक्ट सीएम मिल गए हैं।
सीएम पुष्कर धामी के भीतर पूर्व सीएम एनडी तिवारी जैसी विन्रमता, विजन नजर आ रही है। लोगों, कार्यकर्ताओं के साथ सहजता से मिलना, आम जन को विश्वास दिलाना कि उनकी समस्याओं का गंभीरता के साथ निस्तारण होगा, इसमें वे सफल रहे हैं। गंभीरता और सख्ती में उनके भीतर पूर्व सीएम भुवनचंद्र खंडूडी और त्रिवेंद्र रावत जैसे गुण मौजूद हैं। राज्य गठन के बाद पहली बार कोई आईएएस जेल गया और आईएफएस निल्बित होने के साथ साथ मुकदमे में आ फंसे आईएएस राम विलास यादव को सलाखों के भीतर भेज और आईएफएस किशन चंद के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा कर उन्होंने अपने सख्त प्रशासनिक रुख को जाहिर भी कर दिया है। अधीनस्थ सेवा चयन आयोग मामले में भी सीएम पुष्कर की सख्ती ही है, जो अभी तक 20 से अधिक लोग गिरफ्तार हो चुके हैं।
सरकार को सीएम आवास और सचिवालय से चलाने की बजाय उनका निरंतर मूवमेंट पूरे राज्य में है। इस मामले में वे पूर्व सीएम हरीश रावत की तरह गढ़वाल, कुमाऊं, हरिद्वार, यूएसनगर का लगातार भ्रमण कर रहे हैं। ऐसा कर वो जमीनी हकीकत को भी देख रहे हैं। इस तरह सीएम पुष्कर धामी के भीतर सभी पूर्व सीएम के गुणों का समावेश नजर आता है। खास बात ये है कि अभी तक के पूर्व सीएम में जो भी खामियां रहीं, उनसे पुष्कर पूरी तरह दूर हैं। एनडी तिवारी और विजय बहुगुणा की तरह वे सिर्फ सीएम आवास से सरकार नहीं चला रहे, बल्कि जनता के बीच पहुंच रहे हैं। बीसी खंडूडी सरकार में जिस तरह सचिव सीएम प्रभात कुमार सारंगी का दखल रहा, पुष्कर राज में किसी भी नौकरशाह को ये आजादी नहीं है। रमेश पोखरियाल निशंक का कार्यकाल जिस तरह कुंभ, स्टुर्जिया, 56 पॉवर प्रोजेक्ट के कारण चर्चा में रहा, पुष्कर सभी तरह के विवादों से दूरी बनाए हुए हैं।
त्रिवेंद्र रावत सरकार में जिस तरह संगठन, सरकार और कार्यकर्ताओं के बीच संवादहीनता की स्थिति रही, वो पुष्कर राज में नहीं है। कुल मिला कर सीएम के रूप में पुष्कर सिंह धामी का अभी तक का एक साल कार्यकाल बेजोड़, विवाद रहित, विजनरी और कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने वाला रहा। इसी उत्साह के दम पर पुष्कर धामी ने सभी मिथक तोड़ते हुए लगातार दोबारा राज्य में सरकार की वापसी कराई। जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। इस तरह सीएम पुष्कर धामी के रूप में राज्य की जनता की एक परफेक्ट सीएम की खोज समाप्त हुई।
मीडिया बयानों में नहीं पकड़ पाई झोल
पूर्व के मुख्यमंत्रियों के बयानों में कोई न कोई ऐसी बात निकल जाती थी, जिस पर कई बार राष्ट्रीय स्तर पर विवाद खड़े हो जाते थे। जिन बयानों से भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व तक को असहज होना पड़ता था। इस मामले में सीएम पुष्कर धामी के अभी तक के कार्यकाल में कोई भी ऐसा बयान, बात सामने नहीं आई, जिसे मीडिया ने मुद्दा बनाया हो।
पहले सीएम, जो आस पास की चौकड़ी से पूरी तरह मुक्त है
सीएम पुष्कर धामी का दूसरा कार्यकाल पूरी तरह आस पास की चौकड़ी से मुक्त है। पूर्व के मुख्यमंत्रियों की नाकामी का एक बड़ा कारण आस पास की यही चौकड़ी रही है। कहीं नौकरशाहों का जरूरत से अधिक दखल, तो कहीं ओएसडी, पीआरओ समेत दूसरे करीबियों की भीड़। इस बार नए कार्यकाल में पुष्कर बेहद सतर्क हैं। सीएम के कोर जोन में इस बार किसी की भी एंट्री आसान नहीं है। अपने खास करीबियों को भी मुख्यमंत्री की सख्त हिदायत है कि सभी कायदे में रहें।