चौखुटिया में इलाज के नाम पर कांग्रेस की डर्टी पॉलिटिक्स, सियासत का नया ड्रामा शुरू

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चौखुटिया में इलाज के नाम पर कांग्रेस की डर्टी पॉलिटिक्स, सियासत का नया ड्रामा शुरू

विधायक मनोज तिवारी ने रद्द कराया डॉक्टरों का स्थानांतरण तो यशपाल आर्या ने इस पर सरकार से पूछा ऐसा क्यों?

जनता डॉक्टर चाहती थी, नेताओं ने राजनीति थमा दी

24 घंटे में धामी सरकार ने सीएचसी को उप-जिला अस्पताल बनाया, लेकिन विपक्ष को ‘बुखार’ चढ़ गया

जनता को डॉक्टर मिले — कांग्रेस को दर्द हुआ!

आदेश हुए जारी, फिर विरोध में हुए रद्द

‘फैमिली डॉक्टर पॉलिटिक्स’ का खुलासा

पूर्व सीएम की नातिन और विधायक के करीबी पर सियासी हलचल

डॉक्टर को ट्रांसफर के बाद पैर में चोट — मेडिकल सर्टिफिकेट देहरादून से!

अब इलाज या बहाना?

चौखुटिया में जनता के इलाज की बात शुरू हुई थी, लेकिन अब मामला इलाज से ज़्यादा राजनीति के इंजेक्शन का हो गया है। जनता डॉक्टर मांग रही थी, सरकार ने डॉक्टर दे दिए… मगर विपक्ष को इससे भी परेशानी हो गई। अब ये सियासी प्रिस्क्रिप्शन कैसे बिगड़ गया। जानते हैं इस रिपोर्ट में

अल्मोड़ा ज़िले के चौखुटिया क्षेत्र में 24 दिन से लोग आंदोलन कर रहे थे। मांग थी कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर और सुविधाएं मिलें। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जनता की आवाज़ सुनी और सिर्फ 24 घंटे के भीतर बड़ा फैसला ले लिया । सीएचसी को उप-जिला चिकित्सालय घोषित किया गया और डॉक्टरों की तैनाती के आदेश भी जारी हुए।

अल्मोड़ा जिला अस्पताल से डॉ. मनीष पंत और डॉ. कृतिका भंडारी को चौखुटिया भेजने के आदेश जारी हुए। लेकिन कहानी यहीं से पलटी।
जैसे ही जनता को राहत मिलनी शुरू हुई, विपक्ष को बेचैनी होने लगी। कांग्रेस ने इस पूरे प्रकरण में ऐसा शोर मचाया कि स्वास्थ्य विभाग को आदेश वापस लेने पड़े। अब यह वही कांग्रेस है जो खुद को जनता की आवाज़ बताती है। लेकिन जब जनता की आवाज़ सरकार ने सुन ली, तो इन्हें दर्द हो गया। दरअसल, डॉ. कृतिका भंडारी पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की नातिन हैं, और डॉ. मनीष पंत, विधायक मनोज तिवारी के करीबी। शनिवार को मनोज तिवारी करीब 200 समर्थकों के साथ सीएमओ ऑफिस पहुंच गए। घेराव किया और ऑफिस को ही ‘राजनीतिक वार्ड’ बना दिया। अब कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ही सवाल पूछ रहे हैं जब आदेश रद्द ही करने थे तो जारी क्यों किए गए, जबकि, सवाल उन्हीं से पूछा जाना चाहिए कि जब डॉक्टर चाहिए ही नहीं थे तो मुद्दा क्यों बनाया।

अब सवाल ये उठ रहा है क्या यह मामला जनता के इलाज का था या फैमिली डॉक्टर पॉलिटिक्स का?

और अब सुनिए सबसे दिलचस्प बात जिन डॉ. कृतिका भंडारी का ट्रांसफर हुआ था, उन्हें अचानक पैर में चोट लग जाती है और वो 15 दिन की मेडिकल लीव मांग लेती हैं। लेकिन छुट्टी का सर्टिफिकेट आता है देहरादून के कोरोनेशन अस्पताल से। अब ये तो खुद मेडिकल मिस्ट्री बन गई कि जो डॉक्टर ड्यूटी पर थीं ही नहीं, वो छुट्टी किससे ले रही हैं?

कुल मिलाकर, सरकार जनता के मुद्दों का इलाज कर रही है, और विपक्ष हर इलाज में राजनीति का इंजेक्शन लगा रहा है। चौखुटिया का अस्पताल अब उप-जिला चिकित्सालय बन गया है, लेकिन विपक्ष की मानसिक हालत अभी भी पुराने वार्ड में भर्ती दिखाई दे रही है।

तो जनता को अस्पताल मिला, सुविधाएं मिलीं, पर राजनीति को फिर से मिल गया एक नया ड्रिप स्टैंड पकड़ने का मौका। चौखुटिया में इलाज जारी है बस बीमारी अब सियासी हो चुकी है।