उत्तराखंड में विज्ञापन खर्च पर सियासत गरम, लेकिन क्या है हकीकत?
देहरादून। उत्तराखंड की राजनीति एक बार फिर गर्माई हुई है। राज्य सरकार के विज्ञापन बजट को लेकर कुछ समूहों द्वारा सवाल उठाए जा रहे हैं, जिसमें दावा किया गया है कि करोड़ों रुपये केवल मुख्यमंत्री या सरकार की छवि चमकाने में खर्च किए जा रहे हैं। हालांकि, इस मुद्दे पर हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
धामी सरकार के चार साल: बिना किसी बड़े घोटाले के पारदर्शी कार्यकाल
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में सरकार ने चार साल से अधिक का कार्यकाल पूरा किया है। इस दौरान कई चुनौतियाँ आईं लेकिन राज्य सरकार के किसी भी विभाग में कोई बड़ा भ्रष्टाचार या घोटाले की बात सामने नहीं आई है। यह अपने आप में इस सरकार के पारदर्शी प्रशासन का संकेत है।
हर आपदा में सबसे आगे नजर आए मुख्यमंत्री
संकट के समय में मुख्यमंत्री धामी की त्वरित मौजूदगी ने उन्हें जनता के बीच एक कर्मठ और संवेदनशील नेता के रूप में स्थापित किया है। चाहे वह सिल्कियारा टनल हादसा हो या उत्तरकाशी की आपदाएं, सीएम धामी ने मौके पर पहुंचकर राहत कार्यों की निगरानी की और पीड़ित परिवारों को ढांढस बंधाया।
विज्ञापन पर उठे सवाल, लेकिन उद्देश्य कहीं अधिक व्यापक
हाल ही में राज्य सरकार द्वारा जारी विज्ञापनों को लेकर कुछ विपक्षी दलों और समूहों ने निशाना साधा। आरोप लगाया गया कि ये विज्ञापन केवल सीएम की छवि गढ़ने के लिए जारी किए गए हैं। लेकिन सरकारी पक्ष का कहना है कि इन विज्ञापनों का मकसद राज्य की योजनाओं, संस्कृति, पर्यटन और लोककलाओं को देश-दुनिया के सामने लाना है।
विज्ञापन के पीछे की असली मंशा क्या है?
राज्य सरकार का कहना है कि विज्ञापन:
चारधाम यात्रा को बढ़ावा देकर स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त करते हैं
उत्तराखंड को वेडिंग डेस्टिनेशन के रूप में स्थापित करने में मददगार हैं
फिल्म नीति के जरिए राज्य में शूटिंग को बढ़ावा देकर पर्यटन और रोजगार को गति देते हैं
स्थानीय उत्पादों को ब्रांडिंग देकर वैश्विक बाजारों तक पहुंचाते हैं
राज्य की संस्कृति और परंपराओं को देश-विदेश में पहचान दिलाते हैं
सरकारी योजनाओं और जागरूकता अभियानों की जानकारी सीधे जनता तक पहुंचाते हैं
सरकार का कहना है कि विज्ञापन केवल प्रचार नहीं, बल्कि विकास की रणनीति का अहम हिस्सा हैं।
राजनीति से ऊपर उठकर हो राज्यहित की चर्चा
विशेषज्ञों का मानना है कि किसी राज्य के विकास, पर्यटन, निवेश और सांस्कृतिक पहचान को सामने लाने के लिए प्रचार अनिवार्य होता है। ऐसे में सरकार यदि मीडिया और प्रचार माध्यमों के ज़रिए योजनाओं और उपलब्धियों को सामने ला रही है, तो इसे मात्र ‘इमेज बिल्डिंग’ कहना ठीक नहीं।
मुख्यमंत्री धामी की सरकार ने अपने कार्यकाल में जनता के प्रति जवाबदेही और संवेदनशीलता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है। ऐसे में आलोचना भी तथ्यों के साथ होनी चाहिए, न कि राजनीतिक लाभ के उद्देश्य से।
निष्कर्ष:
विज्ञापन पर सियासत कोई नई बात नहीं, लेकिन उत्तराखंड जैसे पर्यटन, संस्कृति और प्राकृतिक संपदा से भरपूर राज्य को यदि नई पहचान दिलाने के प्रयास हो रहे हैं, तो उन्हें सिर्फ राजनीतिक चश्मे से देखना राज्यहित के विपरीत होगा। राज्य की छवि और विकास दोनों को साथ लेकर चलना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।