उत्तराखंड सरकार की ओर से राज्य की महिलाओं को सरकारी नौकरी में 30 फीसदी क्षैतिज आरक्षण देने का विधेयक पास करने को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। मंगलवार को सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से छह सप्ताह में जबाव देने को कहा है। यह भी कहा है कि पीसीएस परीक्षा का परिणाम इस याचिका के अंतिम फैसले के अधीन होगा। अगली सुनवाई के लिए चार जुलाई की तिथि नियत की गई है।
उत्तर प्रदेश निवासी आलिया ने उत्तराखंड सरकार की ओर से राज्य की महिलाओं को सरकारी नौकरी में 30 फीसदी क्षैतिज आरक्षण देने सबंधी अधिनियम को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। कहा है कि वह उत्तराखंड की स्थाई निवासी नहीं है और उत्तराखंड अपर पीसीएस परीक्षा 2021 में उत्तराखंड की अभ्यर्थियों से अधिक अंक लाने के बाद भी अनुत्तीर्ण हो गई।
सरकार के वर्ष 2006 के उस आदेश पर हाईकोर्ट की ओर से 24 अगस्त 2022 को रोक लगा दी गई थी। जिसके बाद याचिकाकर्ता का पीसीएस की प्रारंभिक परीक्षा में चयन हुआ। लेकिन हाईकोर्ट की ओर से क्षैतिज आरक्षण में रोक के बाद भी राज्य सरकार ने 10 जनवरी 2023 को राज्य सरकार की ओर से राज्य की महिलाओं को 30 फीसदी क्षैतिज आरक्षण देने का विधेयक पारित किया गया। जिसके बाद याची को पीसीएस मुख्य परीक्षा के लिये अनुत्तीर्ण घोषित कर दिया गया।
अधिनियम संविधान का उल्लंघन
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता डॉ. कार्तिकेय हरि गुप्ता ने बताया कि याचिका में न्यायालय के समक्ष दलील दी गई है कि उत्तराखंड राज्य के पास डोमिसाइल आधारित महिला आरक्षण प्रदान करने के लिए ऐसा कानून बनाने की कोई विधायी अधिकार नहीं है। यह अधिनियम केवल हाईकोर्ट के आदेश के प्रभाव को समाप्त करने के लिए लाया गया है, जो कि वैधानिक नहीं है। भारत के संविधान में इसकी अनुमति नहीं है। यह अधिनियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करता है।