जंगलों में आग की घटनाओं को लेकर शासन सीजन पूर्व तैयारी शुरू

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देहरादून प्रमुख सचिव वन आर के सुधांशु ने वन आग्नि के बाबत विस्तृत निर्देश जारी किए है

वनों में अग्नि दुर्घटनाओं में प्रतिवर्ष बहुमूल्य राष्ट्रीय वन सम्पदा की अपूरणीय क्षति होती है। वनों में अग्नि की रोकथाम के लिए यद्यपि वन विभाग द्वारा प्रभावी कार्यवाही सुनिश्चित की जाती है, परन्तु वनाग्नि पर नियंत्रण का दायित्व केवल वन विभाग द्वारा निर्वहन किया जाना सम्भव नहीं है। विगत वर्ष ग्रीष्मकाल में प्रदेश में न्यून वर्षा, तापमान में भीषण बढ़ोत्तरी एवं लम्बे Dry Spell होने के कारण उत्तराखण्ड के वनों में वनाग्नि की अधिक घटनायें प्रकाश में आयी थी, जिसके नियंत्रण हेतु वन विभाग के सम्बन्धित अधिकारियों / कार्मिकों द्वारा युद्ध स्तर पर कार्यवाही करते हुए एस०डी०आर०एफ०, पैरामिल्ट्री फोर्स तथा आपदा प्रबन्धन की QRT का सहयोग लिया गया। जिलाधिकारियों के सक्रिय सहयोग के बिना वनाग्नि की घटनाओं पर प्रभावी नियंत्रण सम्भव नहीं है।
वनाग्नि सत्र – 2023 में उपलब्ध वित्तीय संसाधनों का प्रभावी उपयोग करते हुए वनाग्नि के सुचारू रूप से नियंत्रण / रोकथाम हेतु अभी से प्रभावी कदम उठाये जाने की नितान्त आवश्यकता है। अतः प्रदेश में वनाग्नि घटनाओं की रोकथाम एवं प्रभावी नियंत्रण हेतु निम्नलिखित दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रभावी कार्यवाही सुनिश्चित की जाय :-
1. उत्तराखण्ड शासन, वन एवं पर्यावरण अनुभाग-2 के शासनादेश संख्या-554 / 1 (2) व०ग्रा०वि० / 2004-9 (22) / 2001, दिनांक 27 मार्च, 2004 द्वारा वनाग्नि सुरक्षा हेतु जिलास्तरीय, विकासखण्ड एवं वन पंचायत स्तर पर समितियों के गठन हेतु निर्देश निर्गत किये गये हैं। शासनादेश के अनुसार इन समितियों का गठन तथा इनके स्तर से वनाग्नि सुरक्षा के उपाय सुनिश्चित कराये जाय ।
2. वनाग्नि सत्र – 2023 प्रारम्भ ( 15 फरवरी 2023) होने से पूर्व समस्त सम्बन्धित विभागों की बैठक अतिशीघ्र सम्पन्न कर वनाग्नि नियंत्रण से संबंधित व्यवस्था का विधिवत् अनुश्रवण कर लिया जाय, जिससे कि वनों में होने वाली वनाग्नि घटनाओं को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सके।
3. वनाग्नि सत्र 2023 प्रारम्भ (15 फरवरी 2023) होने से पूर्व यह सुनिश्चित कर लिया जाय कि सभी जिलाधिकारी जनपद स्तरीय वनाग्नि प्रबन्धन योजना को अपनी अध्यक्षता में गठित समिति के माध्यम से अनुमोदित कराते हुए मुख्य वन संरक्षक, वनाग्नि एवं
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आपदा प्रबन्धन, उत्तराखण्ड को उपलब्ध करा दी जाये, ताकि मुख्य वन संरक्षक, वनाग्नि एवं आपदा प्रबन्धन, उत्तराखण्ड के स्तर से प्रदेश स्तरीय वनाग्नि प्रबन्धन योजना समयान्तर्गत तैयार की जा सके।
4. समस्त जिलाधिकारियों से यह अपेक्षा है कि वे अपनी व्यवस्था के अनुसार वनाग्नि सत्र में समस्त सम्बन्धित विभागों की आवश्यकतानुसार साप्ताहिक / पाक्षिक बैठक आयोजित करें, जिसमें वनाग्नि घटनाओं की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु की गयी कार्यवाहियों की समीक्षा एवं सम्बन्धितों को आवश्यक निर्देश दिये जाए।
5. राजस्व विभाग, पुलिस विभाग, चिकित्सा, लोक निर्माण विभाग, वन पंचायत प्रबंधन आदि अन्य विभागों से समन्वय स्थापित किया जाये। आवश्यकता पड़ने पर सेना व अर्द्धसैनिक बलों का वनाग्नि नियंत्रण हेतु सहयोग प्राप्त किया जाये। सम्बन्धित प्रभागीय वनाधिकारियों को वनाग्नि सत्र के दौरान अन्य विभागों क्रमशः SDRF, आपदा QRT, अग्नि शमन विभाग आदि का सम्पूर्ण सहयोग आवश्यकतानुसार प्रदान किया जाये।
6. सिविल सोयम एवं पंचायती वनों में वनाग्नि की रोकथाम / नियंत्रण एवं शमन में राजस्व एवं पुलिस विभाग के कर्मचारियों का दायित्व सम्बन्धित जिलाधिकारी द्वारा निर्धारित किया जाए। राजस्व भूमि तथा सिविल एवं सोयम वनों में वनाग्नि प्रबन्धन एवं वनाग्नि शमन व्यवस्था स्थापित करने हेतु सम्बन्धित उप जिलाधिकारियों का उत्तदायित्व भी . निर्धारित कराया जाना आवश्यक है।
7. संकंटकाल में वनाग्नि पर नियंत्रण पाने के लिए सम्बन्धित जिलाधिकारियों द्वारा अन्य विभागों के के वाहनों को अधिग्रहित कर इन्हें सम्बन्धित प्रभागीय वनाधिकारियों के नियंत्रण में उपयोग हेतु आवंटित किया जाये। 8. वनाग्नि सत्र में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए पुलिस विभाग के सूचना तंत्र का भी
उपयोग किया जाये। 9. वनाग्नि सत्र के दौरान राजस्व विभाग की मासिक / पाक्षिक समीक्षा बैठक में वनाग्नि नियंत्रण व्यवस्था का विषय भी एजेण्डा में सम्मिलित किया जाये।
10. जनपदों के अन्तर्गत गठित समुदाय आधारित संगठनों यथा-महिला मंगल दलों / युवक मंगल दलों / वन पंचायतों / एन०सी०सी०/ एन०एस०एस० एवं स्वयंसेवी संस्थाओं आदि का चिन्हीकरण कर व्यापक प्रचार-प्रसार के माध्यम से वनाग्नि नियंत्रण हेतु इनका समुचित सहयोग प्राप्त किया जाये।
11. सिविल / वन पंचायत एवं कई आरक्षित वनों में वनाग्नि घटनाओं का मुख्य कारण (तेज हवाओं के कारण) वनों से सटी हुई कृषि भूमि में पराली (आड़ा) जलाने से पाया गया है। ग्रामीणों से कृषि भूमि में पराली (आड़ा) जलाने की कार्यवाही को रोकने अथवा सावधानीपूर्वक जलाने हेतु व्यापक अपील / प्रचार-प्रसार कराने की आवश्यकता है।
12. राजस्व भूमि तथा सिविल एवं सोयम वनों में घटित वनाग्नि घटनाओं की सूचना निर्धारित
प्रारूप में दैनिक / साप्ताहिक एवं मासिक रूप से प्रेषित की जाये।
13. विगत वर्षों में यह पाया गया है कि कुछ शरारती तत्वों द्वारा जानबुझ कर या रंजिश में वनों में आग लगायी जाती है। ऐसे शरारती तत्वों को चिन्हित कर उनके विरूद्ध विधिक कार्यवाही अमल में लाई जाये।
14. समस्त प्रभागीय वनाधिकारी वनाग्नि के दृष्टिकोण से संवेदनशील / अतिसंवेदनशील क्षेत्रों
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( चीड़ बाहुल्य वन क्षेत्र) में कलस्टर के आधार पर गठित की जा रही ग्राम पंचायत स्तरीय वनाग्नि सुरक्षा प्रबन्धन समितियों द्वारा वनाग्नि नियंत्रण / प्रबन्धन हेतु की जा रही कार्यवाही का अनुश्रवण सुनिश्चित करेंगे।
15. वनाग्नि सम्बन्धी सूचनाओं के लिए 85-87, राजपुर रोड-देहरादून स्थित राज्य स्तरीय वनाग्नि एवं आपदा प्रबन्धन कक्ष के टोल फ्री नं0-18001804141, लेन्डलाईन नं०- 0135-2744558 एवं व्हाट्सएप नं० -9389337488 का अधिकाधिक प्रयोग एवं प्रचार-प्रसार किया जाये तथा प्रदेश स्तर पर उक्त माध्यम पर वनाग्नि सूचनाओं को प्रेषित किया जाये ।
16. वनाग्नि सत्र -2023 के दौरान प्रत्येक जिले में जिला आपदा परिचालन केन्द्र ( DEOC) को सम्बन्धित प्रभागीय वनाधिकारियों के मास्टर कन्ट्रोल रूम से अवश्य जोड़ा जाये एवं यह सुनिश्चित किया जाये कि सभी DEOC राज्य परिचालन केन्द्र ( SEOC) तथा उपरोक्त वनाग्नि एवं आपदा प्रबन्धन कक्ष से वनाग्नि घटना की सूचना आदान-प्रदान हेतु सक्रिय रूप से जुड़ें रहे।
अतः इस सम्बन्ध में मुझे यह कहने का निदेश हुआ है कि वनाग्नि सत्र -2023 में वनाग्नि प्रबन्धन / नियंत्रण हेतु उपरोक्त दिशा-निर्देशों के अनुरूप अग्रेत्तर आवश्यक कार्यवाही करने का कष्ट करें।